Tuesday, April 28, 2020

किसने तोड़े हिन्दू मंदिर? (भाग 2)|| Who destroyed Hindu temples? (Part 2)|| Exposing Faizan Mustafa

मैंने भाग 1 में फ़ैज़ान मुस्तफ़ा के एक विडिओ के बारे में बताया था कि किस प्रकार वो एक ऐसा भ्रमजाल फ़ैला रहा है कि हमारे देश में बौद्ध मत को समाप्त करने में सनातन धर्मियों की भूमिका है न कि मुसलामानों की। इस प्रकार वो आज के हिन्दुओं में एक ग्लानि भाव भरने का प्रयास कर रहा है। हम जानते हैं कि आज के हिन्दू या मुसलमान तो इतिहास में पीछे जाकर कुछ परिवर्तन नहीं ला सकते लेकिन इनका ऐसे वीडियो बनाने का एक उद्देश्य होता है इस्लाम को एक साफ़-सुथरा मज़हब सिद्ध करना। ये जताना कि इस्लाम में कोई बुराई नहीं है, ये तो सनातन धर्म की और हिन्दुस्तान की परम्पराएं ऐसी रही हैं कि यहाँ मत और सोच के आधार पर या मज़हब के आधार  प्रताड़ित किया जाता रहा है। और जैसे जैसे आगे कृष्ण जन्म-भूमि का विषय उठेगा वैसे-वैसे ये लोग और प्रखर होते जाएंगे। ये बीते कई दशकों से यही काम कर रहे हैं। 

अपने इस वीडियो में फ़ैज़ान मुस्तफ़ा जी ने ये जताने का प्रयास किया है कि मिहिरकुल नाम का एक शिव भक्त था  जिसने बहुत से बौद्ध विहारों और स्तूपों को तोड़ा था बौद्ध मतावलम्बियों का नरसंहार भी किया था। 
इस वीडियो को देखते हुए जी पहले तथ्य पर ध्यान जाता है वो ये है कि जिस पृष्ठ को वो दिखा रहा है उसमें कहीं भी मिहिरकुल के शिव भक्त होने का उल्लेख नहीं है, ये शब्द मुस्तफ़ा जी ने अपनी ओर से जोड़ दिए हैं। 
ये छद्म इतिहासकारों की एक बहुत पुरानी चाल है। वर्षों पहले, रोमिला थापर ने भी ऐसा ही कुछ किया था। उसे मार्क्सवादी इतिहास लेखकों की माँ माना जाता है। इस का एकदम सटीक उत्तर एक बहुत ही प्रखर इतिहासकार सीताराम गोयल जी ने दिया था। उन्होंने अपनी पुस्तक "हिन्दू टेम्पल्स: व्हाट हप्पेनेड टू देम (पार्ट 2)" में मिहिरकुल वाले इस आक्षेप का तथ्यात्मक उत्तर दिया था। उन्होंने इस पुस्तक में बताया कि उन्होंने रोमिला थापर को एक पत्र लिखा था जिसमें उन्होंने ये आग्रह किया था कि इस प्रकार के सभी प्रकरणों की एक सूची उन्हें प्रदान की जाए जिसमें हिन्दुओं ने किसी और के पूजा स्थलों का विनाश किया हो। उस समय रोमिला थापर ने ठीक यही आक्षेप लगाया था जो फ़ैज़ान मुस्तफ़ा ने अपने वीडियो में लगाया है। 
आइए इस आक्षेप का आकलन करते हैं:-
सर्वप्रथम तो वो लिखती हैं कि चीनी यात्री ह्यूण त्सांग ने अपनी पुस्तक में उल्लेख किया है कि मिहिरकुल ने सैंकड़ों बौद्ध भवनों को ध्वस्त किया था लेकिन संभव है कि आप इसे अतिश्योक्ति और स्वयं एक बौद्ध होने के कारण उसका दुराग्रह मान लें किन्तु हमारे देश में एक और इतिहास की पुस्तक है राजतरंगिणी जिसे एक ब्राह्मण लेखन कल्हण ने लिखा है। संस्कृत में लिखी ये पुस्तक काश्मीर में लिखी गयी थी। वो भी उल्लेख करता है कि मिहिरकुल जोकि एक हूण था, उसने 1600 से अधिक बौद्ध भवनों को ध्वस्त किया था और सहस्रों बौद्धों का नरसंहार किया था। 

सीताराम गोयल 

सीताराम गोयल जी ने इसके प्रत्युत्तर में बताया कि रोमिला थापर जानबूझकर ये तथ्य छिपा गई कि पहले मिहिरकुल ने बौद्ध विहार में ये निवेदन किया था कि वो बौद्ध मत के विषय में सीखना चाहता है तो बुद्धों ने जानबूझकर किसी शिक्षक को भेजने के स्थान पर एक भृत्य को इस काम के लिए भेज दिया था। मिहिरकुल इससे आग बबूला हो उठा और उसने बुद्धों को प्रताड़ित करना आरम्भ कर दिया। यही तथ्य फ़ैज़ान मुस्तफ़ा ने भी नहीं बताया। 
दुसरे, उसने शैवमत की दीक्षा ली हो, इसकी संभावना बहुत कम है। उसने कुछ शिव मंदिर बनने दिए थे ये तथ्य है लेकिन वो शैव मत को सीख रहा था या कितना समझ पाया था, इसमें संदेह है। उसके सिक्कों पर एक ऐसी आकृति देखने को मिलती है जो शिवजी से मिलती-जुलती है। लेकिन वो शिव मत के अनुसार चल रहा था, इसमें संदेह है। सबसे बड़ी बात तो ये है कि शिव पुराण में या शैव मत की किसी पुस्तक में ये उल्लेख कहीं नहीं मिलता कि दूसरों के पूजा स्थलों को तोड़ना चाहिए। 

यहाँ मुल्ला-मार्क्सवादी-मिशनरी गुट के लोग ये चाल चलते हैं कि सीताराम गोयल जी तो हिन्दू विचारधारा के पक्षधर थे इसलिए उनपर विशवास क्यों किया जाए। यही बात हमारे भूतपूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की बेटी उपिंदर सिंह भी अपनी पुस्तक में देती हैं जोकि दिल्ली विश्वविद्यालय में इतिहास विभाग की अध्यक्षा रही हैं और किसी भी सूरत में हिंदूवादी नहीं हैं। वो अपनी पुस्तक "पोलिटिकल वायलेंस इन अन्सिएंट इंडिया" के पृष्ठ 241 पर इसी घटना का उल्लेख करती हैं।
  
अब बात करते हैं राजतरंगिणी की। 
श्लोक 289 में कल्हण ने जहां मिहिरकुल का उल्लेख किया है, वो उसे म्लेच्छ कह रहा है न कि शैव। वो मिहिरकुल को कोई सम्मान नहीं दे रहा क्योंकि उसका चरित्र और व्यवहार ही ऐसा था। साथ ही वो उसे कालोपमो नृप कह रहा है; अर्थात ऐसा राजा जो काल के समान था। 
रोमिला थापर ने एक और बात कही थी कि मिहिरकुल ने गांधार में ब्राह्मणों को अग्रहार के लिए भूमि अनुदान में दी थी। इससे वो ये छवि बनाना चाहती है की मिहिरकुल एक हिन्दू, सनातन धर्मी या शैव था। अब देखिए कल्हण इस विषय में क्या कहता है। 


वो इन ब्राह्मणों के लिए द्विजाधम शब्द का उपयोग कर रहा है अर्थात ये अधम श्रेणी के द्विज अथवा ब्राह्मण थे जो मिहिरकुल से अनुदान ले रहे थे। इससे ये स्पष्ट हो जाता है कि हमारे देश की या सनातन धर्म में कभी भी पूजा स्थलों को तोड़ने वालों को सम्मान नहीं दिया गया बल्कि उन्हें अधम ही मन गया है। 
पर षड़यंत्रकारी लोग अर्धसत्यों के सहारे लेकर हमारे मन में ग्लानि भाव भरने का प्रयास करते हैं। आप सभी से निवेदन है सावधान रहें और अपनी सनातन संस्कृति पर गर्व कीजिये। 

नमस्ते!

2 comments:

  1. Dear Nirajbhai,
    Hope you are doing great.
    I have some content and I hope you will like it.
    I wish to share with you this content and please make a vedeo presantation about the same.
    Regards,
    Harin Khatri Mob.9898630523

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  2. Sir,do you teach Physics to college going students or Higher school going students.
    I am really curious as i myself is a graduate in Physics and a student of Physics forever.

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